Tujhe Paakar bhi na Paya Tha, aur Khokar Khoya bhi Nahin hai,,
Tune Ikraar bhi nahin Kiya Tha, aur Tujhe Inkaar bhi nahin hai,,
Maine hi Paya tha Tujhe, aur Maine hi Khoya bhi hai, Phir bhi,,
Mere Dil, Jism aur Rooh se, Aaj tak Juda tu Kyun nahin hai......
Tuesday, May 21, 2013
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-
सी छाती तो है।
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-
सी छाती तो है।
kaun hun mai
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.
Ek dost hai kaccha pakka sa,
Ek jhooth hai aadha saccha sa.
jazbaat ko dhake ek parda bas,
Ek bahana hai accha sa.
Jeevan ka ek aisa saathi hai,
Jo door ho ke pass nahin.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.
Hawa ka ek suhana jhonkha hai,
Kabhi nazuk toh kabhi tufaano sa.
Sakal dekh kar jo nazrein jhuka le,
Kabhi apna toh kabhi begaano sa.
Zindgi ka ek aisa humsafar,
Jo samandar hai, par dil ko pyaas nahi.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.
Ek saathi jo ankahi kuch baatein keh jaata hai,
Yaadon me jiska ek dhundhla chehra reh jaata
hai.
Yuh toh uske na hone ka kuch gham nahi,
Par kabhi-kabhi aankho se ansu ban ke beh jaata
hai.
Tum keh dena koi khaas nahi.
Ek dost hai kaccha pakka sa,
Ek jhooth hai aadha saccha sa.
jazbaat ko dhake ek parda bas,
Ek bahana hai accha sa.
Jeevan ka ek aisa saathi hai,
Jo door ho ke pass nahin.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.
Hawa ka ek suhana jhonkha hai,
Kabhi nazuk toh kabhi tufaano sa.
Sakal dekh kar jo nazrein jhuka le,
Kabhi apna toh kabhi begaano sa.
Zindgi ka ek aisa humsafar,
Jo samandar hai, par dil ko pyaas nahi.
Koi tumse pooche kaun hoon main,
Tum keh dena koi khaas nahi.
Ek saathi jo ankahi kuch baatein keh jaata hai,
Yaadon me jiska ek dhundhla chehra reh jaata
hai.
Yuh toh uske na hone ka kuch gham nahi,
Par kabhi-kabhi aankho se ansu ban ke beh jaata
hai.
Tuesday, December 6, 2011
भीख मागते बच्चे , सपनों का भारत
भीख मागते बच्चे , सपनों का भारत
भारत का भविष्य खतरें में
कोई आवाज शायद मुझे पुकार रही थी। बाबूजी, ‘दो रुपये दे दो’। आवाज पिफर आई। एक लड़की व उसकी गोद में एक और छोटा बच्चा था। उम्र करीब 8 और 3 वर्ष होगी। आवाज पिफर से आई। अबकी बार आवाज में क्रोध् व करूणा के स्वर मिश्रित थे। मैंने जेब से सिक्का निकाला तो बस चल दी थी इसलिए मैंने जल्दी से सिक्का उसकी और पेंफक दिया।
अब मेरा मन विचलित सा हो गया उन बच्चों का चेहरा मेरी आंखों के सामने बार-बार घूम रहा था। सब छोड़ मैं उन बच्चों के बारे में सोचने लगा। न जाने मुझे क्या याद आ रहा था कभी निठारी, हत्या कांड, तो कभी डॉक्टरों द्वारा बच्चों का बदलना। मेरे मन की स्थिति यह थी की इनके बारे में सोचता ही चला गया, गहराई से और गहराई से।
अब मेरा मन विचलित सा हो गया उन बच्चों का चेहरा मेरी आंखों के सामने बार-बार घूम रहा था। सब छोड़ मैं उन बच्चों के बारे में सोचने लगा। न जाने मुझे क्या याद आ रहा था कभी निठारी, हत्या कांड, तो कभी डॉक्टरों द्वारा बच्चों का बदलना। मेरे मन की स्थिति यह थी की इनके बारे में सोचता ही चला गया, गहराई से और गहराई से।
अचानक बस के ब्रेक लगे और मैंने अपने आपको दिल्ली के ऐतिहासिक ईमारत इंडिया गेट पर पाया। यहाँ का नजारा दूसरा था। बच्चे देश के शहिदों को याद कर रहे थे। पूफल अर्पित कर रहे थे। उनकी स्मृति चिन्ह् ;तस्वीरद्ध के सामने मोमबत्ती व दिये जला रहे थे। बच्चे बहुत खुश थे। स्थिति पिफर वही सोचने वाली बन गई। क्या इंडिया और भारत का ये फासला कभी मिट पायेगा?
रविवार का दिन, दिल्ली के एक खासम-खास चैराहें पर, वक्त 12 बजे का था। कुछ बच्चे सड़क के बीच में यानी दो सड़कों के ;डिवाइडर परद्ध खड़े हुए थे। मैं काफी देर तक उन्हे देखता रहा। जब रेडलाइट हो जाती तो वे फिर से अपने-अपने काम में जुट
जाते। एक-दो रुपये भीख मांग रहे थे। कुछेक मुंगफली, चने बेच रहे थे। कभी-कभार कोई खरीद भी लेता। दूसरे बच्चे को ज्यादातर कुछ नहीं मिलता था। हरी बत्ती होते ही, थक हार कर वह अपनी जगह पर आ जाते। लेकिन, पिफर एक नई रेडलाइट के साथ ताजगी और उत्साह के साथ पिफर वहीं काम में लग जाते। दिल्ली के किसी भी चैराहों पर यही स्थिति देखने को मिल जायेगी।
दूसरी और जरा सी नजर चुकने पर, आपकी कार से कोई भी छोटा व महँगा समान गायब हो जाता है। झटके से आपके गले की चैन, बैंग गबन कर जाते है। ये भीख मांगने की आड़ में चोरी करते हैं। शिकार की हालत बेबस जैसी होती है। वह आगे बढ़ने में ही भलाई समझता है।
भारत की गरीबी और भीख मांगने पर हिन्दी सिनेमा ने अच्छा चित्रांकन किया है। स्लमडॉग मिलेनियर ऐसी ही फिल्म है। जहाँ बच्चों से भीख मंगवाने जैसे दृश्य दिखाये
दूसरी और जरा सी नजर चुकने पर, आपकी कार से कोई भी छोटा व महँगा समान गायब हो जाता है। झटके से आपके गले की चैन, बैंग गबन कर जाते है। ये भीख मांगने की आड़ में चोरी करते हैं। शिकार की हालत बेबस जैसी होती है। वह आगे बढ़ने में ही भलाई समझता है।
भारत की गरीबी और भीख मांगने पर हिन्दी सिनेमा ने अच्छा चित्रांकन किया है। स्लमडॉग मिलेनियर ऐसी ही फिल्म है। जहाँ बच्चों से भीख मंगवाने जैसे दृश्य दिखाये
गये है। फिल्म को 8 अवार्ड भी मिले है। यह भारत के चेहरे पर मारा गया एक तमाचा है। जिससें भारतीय गरीब बच्चों की हकिकत को दर्शाया है। ऐसी हकिकत ही सरकार की योजनाओं की पोल खोलती है। वही र्सिफ अकेली फिल्म नहीं है न जाने ऐसी कितनी फिल्में, डाक्यूमेंट्री में बनी हुई है। जो कि, गरीब के दृश्यों को बेचकर पैसा दस्तूर अभी भी जारी है।
दिल्ली में बच्चा चोर गैंग में भी अपना आतंक पैफला रखा है। आये दिन खबर आती है बच्चा गैंग पकड़ा गया। ज्यादातर ये बच्चे शादी, पार्टियों में लोगों शिकार बनाते है। बच्चा गैंग में 7 से 18 वर्ष तक के बच्चे होते है। ये ज्यादातर भीड़-भाड़ में अपना शिकार पर हाथ सापफ करते है। दिल्ली के कुछेक खखस इलाके है जहाँ ये बच्चा गैंग बसों में भी हाथ की करामात दिखाते है। बच्चा गैंग को कोई बड़ा शातिर दिमाग चलता है। इसे मास्टर मांइड कहा जाता है। मास्अर मांइड टारगेट को बटाने के एवेज में आध्े से ज्यादा चैरी किये हुऐ माल का लेता है।
ये सब दिल्ली के उस चैराहें पर हो रहा था जहां से देश का सबसे बड़ा न्याय का मंदिर कुछ ही दूरी पर स्थित है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो इंडिया जरूर विश्व के विकासशील देशों की आग्रह श्रेणी में खड़ा होगा। लेकिन, भारत वहीं पिछड़ी हुई स्थिति पर बना रहेगा। सरकार इससे निपटने के लिए क्या कर रही है, पता नहीं, लेकिन एक बात तो तय है मुझे जब तक ऐसे बच्चे सड़कों पर भीख व चोरी करते रहेगें तब तक दिल्ली सुरक्षित नहीं रह सकती। दिल्ली की सरकार की ओर से बनाई गई सरकारी योजनाऐं जो इन बच्चों के लिए बनाई गई है, वह कहाँ काम कर रही है? कब तक देश का भविष्य ऐसे ही सड़कों पर घूमता रहेगा?
भारतिय संस्कृति पर अपशब्द का प्रभाव
भारतिय संस्कृति पर अपशब्द का प्रभाव
संस्कृति का अर्थ संस्कारो से हैं। भारतिय संस्कारो के अनुसार बड़ो का आदर करना,प्रेम से रहना हैं। संस्कृति प्रेम-भाव को बढ़ती हैं। विशव में अमेरीका हमारी संस्कृति को अपनाने कोशिश कर रहा हैं। भारत की योग शिक्षा को बढ़वा विदेशो में मिल रहा हैं। बढ़े परिवार यानी आप आपके बच्चे और माता-पिता और सम्भव हो तो चाचा, ताउ के परिवार के साथ रहे लेकिन भारत विदेशी संस्कृति को आधुनिकता के नाम पर ग्रहण कर रहा हैं।
ममूली कहासुनी में दोस्त को चाकू मारा शाहरुख ने। दो मोटर साईकिल चोर पकड़े। चोरी फिल्मीं अंदाज में। 11 वर्श की किषोरी से बलात्कार किया। ये कहानी नहीं है ये आज के समाज की हक्कित हैं।
भारतिय समाज में टेलीविजन आने से सूचना की क्रान्ति आई। जिससे भारतिय गांवों में भी इसका लाभ उठाया गया। सन 2000 –05 के बाद टेलीविजन पर न्यूज चैनलों की बाढ़ सी आ गई हैं। जहां हर चैनल टी आर पी पाने की होड़ में लगा हुआ हैं। टी वी चैनल के मालिक ये नहीं देखता की समाज पर इसका क्या असर होगा? टी आर पी पाने के लिए कुछ भी दिखाने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे विडियो का प्रयोग करते है जिससे दर्शक लगातार बना रहे। टी वी आधुनिकता के नाम पर अपशब्द गालीयों और अपद्रता की भाषा परोसी जा रही हैं। युवती मुन्नी और “शीला की बोली बोल रही है युवक चुलबुल पांडे की जुबान के हो रहे है। पांडे जी संस्कारों छेद कर रहे है।
एक बस ड्राइवर ने कहा आजकल बच्चे गाली बहुत देते है मेरा बाप साला आया और आते ही साले ने मुझे डाँट दिया।
एकल परिवार बढ़ रहे है। माता-पिता नौकरी कर रहे है ऐसे में बच्चे टी वी देखते हुऐ अपद्र भाषा को सिखते है । जिन परिवारों में दादा दादी और कोई बढ़ा बुर्जुग रहते है उन परिवारों मे बच्चों के बोल चाल भाषा अलग होती हैं। ज्यादातर माता– पिता झगड़ा करते है जिससे बच्चे उनकी भाषा को ग्रहण करते हैं। पढ़े लिखे परिवार भी ऐसे भाषा से अछुते नही हैं। अखबारों और टी वी की अष्लीलता को अपना रहे हैं। ये पद्धिति पिढ़ी दर पिढ़ी वृद्धि हो रही हैं। वृद्ध आश्रम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। युवा बढ़े बुर्जुगों को बोझ समझते है। एकल परिवार को महत्व दे रहे है।
मनोवैज्ञानिको का मानना है कि व्यक्ति की सोच सीमित होती जा रही है जिसका परिणाम वह परिवार को छोटा व सीमित करना चहाता है। साहित्यिक भाषा की पकड़ कमजोर हो रही है विदेशी संस्कृति के कारण अपशब्दों को अपना रहे है। विदेशी संस्कृति को अपनना चाहिए। जिससे हम आधुनिक तो बने सर्कीण सोच वाले नही। जिस तरह इंडिया नही भारत को बनाये रख सके।
ऐसी घटनाऐ “शार्मसार करने वाली होती है समाज में मानविय सवेंदनाए समाप्त होती जा रही है। ऐसी घटनाओं की “शुरुआत अपद्र भाषा की देन माना जा सकता है फिल्मी साहित्य से उपजी संस्कृति कही जा सकती हैं। टी वी चैनलों का समाज को उपहार सरुप हैं।
जैसलमेर मे मरु मेला
जैसलमेर मे मरु मेला
मरू उत्सव शुरु होने से पहले अर्जुन सिंह भाटी ने जैसलमेर वासियों की खुशी दुगनी कर दी।(लाइव शो अराउंड द वर्ल्ड विथ अर्जुन सिंह भाटी( के 100 एपिसोड पुरे कर लिए है। ये कार्यक्रम अमेरिक अंग्रेजी में रेडियो पर लाइव आता है।
जैसलमेर मे मरु समारोह की धूम मची हुई है।16 से 18 फरवरी को आयोजित कार्यक्रमों की तैयारीव्यापक तौर पर की जा रही है। मारवाड़ी छवि के साथ-साथ मनोरंजन के लिए प्रसिद्ध है। मरू मेले में उँटो की प्रदर्शनी की जाती है। राजस्थान के रेगिस्तान के जहाज ऊँट के साथ मिलकर करतब दिखाए जाते है। यह पूनम सिंह स्टेडियम में किया जाता है। सबसे ज्यादा आकर्षक मुंछो की प्रदर्शनी होती है। यह मूंछ प्रतिस्पर्द्धा में विदेशी पर्यटक भी भाग लेते है। मारवाड़ी संस्कृति का रूप पुरे मेले पर झलकता है। मेले में देशी विदेशी पयर्टको को बढ़ावा देने के लिए अलग अलग तरह के कार्यक्रम किये जाते है।
जैसलमेर राजस्थान का सबसे बड़ा(क्षेत्रफल) जिला है। जैसलमेर का नामकरण भाटीजैसल राजा के नामपर रखा गया।भारतीय इतिहास में ये अपनी कला व् संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। भारत के पश्चिम भाग में है। इसकी सीमा रेखा पाकिस्तान से मिलती है। जैसलमेर में रेत के टीले है इनको धौरे भी कहा जाता है। धौरे सम के सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। इसका कारण भी है की यह रेत कुछ दुरी पर देखने पर पानी लगती है। सम के घर मिटटी के बने होते है। यह मिटटी भी सम से 60 और जैसलमेर शहर से करीब 150 कि मी दूर से लाई जाती है। सम में घर पर छत जंवासा और आकड़ो के पत्तो से बनाई जाती है। ये घर शंकुनमा होते है।
संस्कृति तो यह के कण−कण में बसी हुई है। राजस्थान कि संस्कृति एक तरह इसको ही मन जाता रहा है।कालबेलिया और घुमर यह के स्थानीयनृत्य है। नृत्य करते समय पहने जाने वाले वस्त्र आभूषण विशेष है। ये अपने आप में ही संस्कृति कि छवि को प्रदर्सित करते है। नायिका के बालो में 2 से 3 के रंग बिरंगे चुटीले होते है।नायिका कि ओढ़नी ढेड पाट साथ में 7 से 8 मीटर का लंहगा होता है। आभूषण के नाम पुरे शरीर पर चांदी होती है।
प्राचीन महलो कि कारीगरी देखने में लुभावनी है।कारीगरों ने बहुत बारीकी से पत्थर पर नकाशी व् चित्रकारी के नमूने उखेरे है! ये चित्रकारी विदेशो तक प्रसिध्द है। सोनार किला जैसलमेर के शहर में है या, ये कहे कि किले के चारो तरफ शहर बसा हुआ है। सोनार किला छोटी सी पहाड़ी पर बसा हुआ है।किले से पूरा जैसलमेर सुंदर ढंग से बसाया हुआ शहर लगता है। सोनार किले के ठीक सामने गडिसर झील है। झील किले के दरवाजा के सामने है। पटवा हवेली दो अलग -अलग समय कि बने हुई है । लेकिन देखने से कोई जज (निर्णय) नहीं कर सकता। किले और हवेली कि खास बात बनाने में चुने और सीमेंट का इस्तेमाल नहीं किया गया। इसमे पीले पत्थर चोकोर व् आयत में कटा कर जमाया गया है। पीले होने के कारण यह सोनार किला कहा जाता है। सूर्यउदय के समय किले कि छटा देखते ही बनती है। किले के परकोट बहुत ही सुंदर दंग से पत्थरों को जोड़ा गया है।
जैसलमेर पयर्टको के मायने में बहुत महत्वपूर्ण जिला है। इसका मुख्य कारण यह किसंस्कृति के साथ साथ वातावरण भी है 20 से 30 प्रतिशत लोग यह पयर्टक पर निर्भर रहते है।
गर्मी का मौसम बहुत निराशा भरा होता है लेकिन और सभी मौसम यह घुमने के अनुकूल है। सर्दियों में यहा नाम मात्र कि ठंढ पडती है! ठंढे परदेसो के विदेशी यह ठंढ में घुमने आते है।
आधुनिक बदलाव के साथ साथ जैसलमेर इतना नहीं बदला है। यह शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ हाय भारतीय सेना का यहा जमावड़ा रहता है। इसका मुख्य कारण पाकिस्तान से जुडी सीमा कि सुरक्षा करना। सीमा पर सैनिको के लिए शहर से सामान ले जाया जाता है ! यह के लोग आपने आप को सुरक्षित महसूस करते है। सुविधा के नाम पर यहा सेना का छोटा साहवाई अडडा भी है। यातायात के लिए रेल व् बस भी है। चिकित्सा के क्षेत्र में यह बहुत पिछड़ा हुआ है ।
इसी स्थति में संस्कृति के साथ−साथ आधुनिकता व् शिक्षा को यहा के लिय बदव लानाहोगा ।
समाजिक, आर्थिक असमानता एंव भ्रष्टाचार
समाजिक, आर्थिक असमानता एंव भ्रष्टाचार
आधुनिक जगत क महान विरोधभास यह है कि हर स्थान पर मनुष्य अपने को समानता के सिद्धान्त का समर्थक बताते है और हर स्थान पर वे अपने जीवन में तथा दुसरे के जीवन में असमानता की उपस्थिति का सामना करते है।-आन्द्रे बेतई
समाज में किसी खास वर्ग को किसी वस्तु त्यौहार और विश्वमें अलग जाता है तो,असमानता श्रेणी में माना जाता है। समाज में असमानता अलग -अलग रुप में बांटी हुंई है। प्रथम प्राकृतिक या जैविक जैसे लिंग, स्वास्थ्य शारीरिक शक्ति, आयु, बुद्धि के स्तर पर देखते है। इन कमीयों के कारण, एक व्यक्ति अपने आपको समाज से अलग पाता हैं। मानसिक स्थिति ठिक नही होती हैं। यह एक पिछड़े वर्ग में ही गिनते है।
दुसरी स्थिति समाजिक ओर आर्थिक होती है जिसमें व्यक्ति के रहन-सहन समाजिक स्तर आदि चीजों को देखा जाता हैं। जिसमे अलग-अलग आर्थिक स्थिति के कारण माने जाते हैं।
भ्रष्टाचार सस्ंकृति में वायरस की तरह फैलता जा रहा हैं। विदेशी फैसन के तौर पर अपना रहे हैं। जब सस्ंकृति का हनन होता हैं तो इसे सस्ंकृति भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। विकास के नाम पर फिजुल खार्ची में बढ़ोतरी कर रहे हैं।
हर कोई सबसे आगे रहना चहाता है। ये अच्छा भी है। जिसके लिए विश्वविधालय और स्कुलों में प्रष्न पत्र लीक किये जाते हैं। गैर सरकारी स्कुल सबसे आगे रहने के लिए जुगाड़ लगाते हैं। बच्चों को “शुरु में ही भ्रष्टाचार में ढकेल रहे है।
भारत को आजाद हुए 63 साल हो गये है। लेकिन आज भी छुआछूत,जाति को देखा जाता है। इतने लम्बे समय में थोड़ा सा तो बदलाव आया है। लेकिन स्थिति बहुत ज्यादा नहीं सुधरी है। राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानन्द, ज्योति बा फुले ने समान में एकता व समानता लाने के लिए आगे आये। स्वंतत्रता की लड़ाई में महात्मा गांधी ने मूल मंत्र दिया की एकता में शक्ति हैं। एक जुट रहना होगा। अपने अतिंम समय में भी एकता का संदेश देते रहे।
समाजिक असमानता जाति के आधार पर कि जाती है। उच्च जाति को स्वर्ण निम्न जाति को अछूत की श्रेणी में रख कर देखा जाता है। इसी अछूत कहलाने वाले वर्ग के लिए भीमराव अम्बेडकर ने कार्य किया। वे स्वंय अछूत कहलाने वाली जाति से संबद्ध थे। सदियों तक वह व्यवस्था रुढ़ियों ओर परम्पराओं के नाम पर चलती रही है। निम्न जाति का शोषण किया जाता है। इसका परिणाम यह निकला कि समाज के समाज के कुछ वर्गों का अधिपत्य रहा, ओर कुछ को अधीनस्थता का जीवन जीना पड़ा। पिछड़े ओर शोषित वर्ग समाजिक सोपान में न केवल निचले स्तर पर चले गये।
भारत सरकार ने समाजिक जीवन में एक जैसा वर्ग स्थापित करने के लिए भारतिय सविधान में प्रावधान बनाये गये हैं। ये प्रावधान अलग-अलग स्तर पर दिखाई पड़ते है। अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत देश सभी नागरिको को विधि की समानता का अधिकार प्रदान किया गया हैं। जिससे समाजिक स्तर पर लोकतंत्र मजबूत होता दिखाई पड़ता है।
समाज में यदि समानता बनानी है। तो आम आदमी का आर्थिक पक्ष मजबूत करना होगा। सरकारी योजनाओं से अछुते किसानों को उनका हक लेना होगा। एक मजबूत लोकतंत्र बनाने के लिए किसानो कि आय बढानी जरुरी है। आर्थिक पक्ष राजनीति को भी प्रभावित करता हैं।
बाहुबली, दंबग व्यक्तित्व वाला व्यक्ति नोटो से वोट खरीदता हैं। पं॰जवाहर लाल नेहरु ने ठिक ही लिखा है “भूखे व्यक्ति के लिए वोट का कोई महत्व नही है। आर्थिक असमानता सम्पतिवान वर्ग का वर्चस्व बढाती हैं।“शोषण और अन्याय की परिस्थितियाँ पैदा करती है। जो आक्रोष और अस्थिरता उत्पन्न करता हैं।”
गांधी जी चुनावओं के लिए जनता से चंदा लेने के भी खिलाफ थे। चुनाव निधि के लिए सरदार पटेल के धन संग्रह के प्रति नाराजगी प्रकट करते हुए उन्होने कहा था कि, कांग्रेस को चुनाव लड़ने के लिए धन की जरुरत ही नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस के लोगों को अपनी सेवा और समर्पण भावना से जनता में ऐसा प्रभाव बनाना चाहिए कि मतदाता स्वंय उनका प्रचार करें। लेकिन कांग्रेस चुनाव निधि के लिए चंदा लेती रही। जिससे धनी लोगों से ली गयी थोक रकमें भी शामिल होती थी।
प्रश्न यह उठता है कि, विकसित विकासशील देशों मेंभ्रष्टाचार के स्वरुप में यह अंतर क्यों हैं ? क्या यह संभव है कि, तीसरी और दुसरी दुनिया के देश भ्रष्टाचार के मामले में कम से कम विकसित देशों के समान निचले स्तर काभ्रष्टाचार समाप्त कर सकें ?
राजनीतिक सत्ता पुलिस का अपने पक्ष में इस्तेमाल करती हैं और कई बार सत्ताच्युत नेताओं तक को पुलिस को रगड़ा लग जाता है। पुलिस भ्रष्टाचार जाति धर्म उम्र लिंग पेशा आदि कटघरों को नहीं मानता।
विकीलीक्स पर लगातारभ्रष्टाचार का खुलासा हो रहा है। पक्ष और विपक्ष एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे है। इसको समाप्त करने के लिए एक पहल पश्चिम बंगाल में बागडा़ सीट पर उपेन बिस्वास सीबीआई के पूर्व अतिरिक्त महानिदेषक चुनाव लड़ रहे है। बिस्वास चारा घोटले को सामने लेकर आये। बिस्वास की खास बात की चुनाव खर्च बागड़ा के लोग उठा रहे है। सारा चुनाव खर्च वेबसाईट पर डालेगें। बिस्वास मानना है की इस तरहभ्रष्टाचार का खत्म किया जा सकता हैं। यदि सभी नेता अपना चुनावी खर्च का खुलास कर दें तो, भ्रष्टाचार खत्म हो जायेगा। कोई कमेटि बनने कि कोई जरुरत नहीं पडेगा।
तमिलनाडु में आईएएस अधिकारी ’यू सागायम’ ने वेब साईट पर अपनी संपत्ति घोषित करके राज्य के आईएएस अफसर के तौर पर इतिहास बनाया है।
1963 के अंत में तत्कालीन गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने घोशणा की उच्च पदों पर भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए वे मजबूत कदम उठायेगें और अगर वे इसमें कामयाब नही हुए तो गृह मंत्री के पद से त्यागपत्र दे देगें।
1986 में स्वीडन की ए‐ बी‐बोफोर्स कंपनी से155 तोपें खरीदने का सौदा तय हुआ। स्वीडन कंपनी ने इस आदेश को पाने के लिए 64 करोड़ रुपयों की दलाली दी। इस कैस में निचली अदालत के एक जज ने बोफोर्स मामले को बंद करते समय सीबीआई को याद दिलाया की मामला 64 करोड़ रुपयों का था और इस कैस पर 250 करोड़ रुपयों खर्च कर दिये गये हैं।
आरुषि हेमराज हत्या कांड, कॉमनवेल्थ गेम्स, दूरसंचार विभाग2-जी स्पेक्ट्रम जैसे बहुत कैस आज भी अदालतों में, और कमेटीयों में चल रहे है। जाने कब तक चलते रहगें ? आम आदमी से लूटा हुआ पैसा कब तक विदेशों में जमा रहेगां ?
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