भारतिय संस्कृति पर अपशब्द का प्रभाव
संस्कृति का अर्थ संस्कारो से हैं। भारतिय संस्कारो के अनुसार बड़ो का आदर करना,प्रेम से रहना हैं। संस्कृति प्रेम-भाव को बढ़ती हैं। विशव में अमेरीका हमारी संस्कृति को अपनाने कोशिश कर रहा हैं। भारत की योग शिक्षा को बढ़वा विदेशो में मिल रहा हैं। बढ़े परिवार यानी आप आपके बच्चे और माता-पिता और सम्भव हो तो चाचा, ताउ के परिवार के साथ रहे लेकिन भारत विदेशी संस्कृति को आधुनिकता के नाम पर ग्रहण कर रहा हैं।
ममूली कहासुनी में दोस्त को चाकू मारा शाहरुख ने। दो मोटर साईकिल चोर पकड़े। चोरी फिल्मीं अंदाज में। 11 वर्श की किषोरी से बलात्कार किया। ये कहानी नहीं है ये आज के समाज की हक्कित हैं।
भारतिय समाज में टेलीविजन आने से सूचना की क्रान्ति आई। जिससे भारतिय गांवों में भी इसका लाभ उठाया गया। सन 2000 –05 के बाद टेलीविजन पर न्यूज चैनलों की बाढ़ सी आ गई हैं। जहां हर चैनल टी आर पी पाने की होड़ में लगा हुआ हैं। टी वी चैनल के मालिक ये नहीं देखता की समाज पर इसका क्या असर होगा? टी आर पी पाने के लिए कुछ भी दिखाने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसे विडियो का प्रयोग करते है जिससे दर्शक लगातार बना रहे। टी वी आधुनिकता के नाम पर अपशब्द गालीयों और अपद्रता की भाषा परोसी जा रही हैं। युवती मुन्नी और “शीला की बोली बोल रही है युवक चुलबुल पांडे की जुबान के हो रहे है। पांडे जी संस्कारों छेद कर रहे है।
एक बस ड्राइवर ने कहा आजकल बच्चे गाली बहुत देते है मेरा बाप साला आया और आते ही साले ने मुझे डाँट दिया।
एकल परिवार बढ़ रहे है। माता-पिता नौकरी कर रहे है ऐसे में बच्चे टी वी देखते हुऐ अपद्र भाषा को सिखते है । जिन परिवारों में दादा दादी और कोई बढ़ा बुर्जुग रहते है उन परिवारों मे बच्चों के बोल चाल भाषा अलग होती हैं। ज्यादातर माता– पिता झगड़ा करते है जिससे बच्चे उनकी भाषा को ग्रहण करते हैं। पढ़े लिखे परिवार भी ऐसे भाषा से अछुते नही हैं। अखबारों और टी वी की अष्लीलता को अपना रहे हैं। ये पद्धिति पिढ़ी दर पिढ़ी वृद्धि हो रही हैं। वृद्ध आश्रम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। युवा बढ़े बुर्जुगों को बोझ समझते है। एकल परिवार को महत्व दे रहे है।
मनोवैज्ञानिको का मानना है कि व्यक्ति की सोच सीमित होती जा रही है जिसका परिणाम वह परिवार को छोटा व सीमित करना चहाता है। साहित्यिक भाषा की पकड़ कमजोर हो रही है विदेशी संस्कृति के कारण अपशब्दों को अपना रहे है। विदेशी संस्कृति को अपनना चाहिए। जिससे हम आधुनिक तो बने सर्कीण सोच वाले नही। जिस तरह इंडिया नही भारत को बनाये रख सके।
ऐसी घटनाऐ “शार्मसार करने वाली होती है समाज में मानविय सवेंदनाए समाप्त होती जा रही है। ऐसी घटनाओं की “शुरुआत अपद्र भाषा की देन माना जा सकता है फिल्मी साहित्य से उपजी संस्कृति कही जा सकती हैं। टी वी चैनलों का समाज को उपहार सरुप हैं।
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